केजरीवाल को SC से बड़ी राहत: 10 लाख के मुचलके पर मिली जमानत, जानिए किन शर्तों पर?

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में शुक्रवार को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केजरीवाल को 10 लाख रुपये के मुचलके और दो जमानत राशियों पर जमानत दी। इससे पहले जस्टिस सूर्य कांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने पांच सितंबर को मामले पर बहस सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था।

शीर्ष अदालत ने केजरीवाल को मामले के संबंध में सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति भुइयां ने केजरीवाल को नियमित जमानत देने के संबंध में न्यायमूर्ति सूर्यकांत से सहमति जताई।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अपीलकर्ता की गिरफ्तारी अवैध नहीं थी और जांच के उद्देश्य से किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने में कोई बाधा प्रतीत नहीं होती, जो पहले से ही किसी अन्य मामले में हिरासत में हो।


पढ़िए SC से किन शर्तों पर मिली दिल्ली सीएम को जमानत.?

  • जेल से बाहर आने के बाद केजरीवाल किसी भी फाइल पर दस्तखत नहीं कर पाएंगे। जब तक ऐसा करना जरूरी ना हो।
  • केजरीवाल के दफ्तर जाने पर भी पाबंदी रहेगी। वे ना तो मुख्यमंत्री कार्यालय और ना सचिवालय जा सकेंगे।
  • इस मामले में केजरीवाल कोई बयान या टिप्पणी भी नहीं कर सकते हैं।
  • किसी भी गवाह से किसी तरह की बातचीत नहीं कर सकते हैं।
  • इस केस से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल को नहीं मंगा सकते हैं। ना देख सकते हैं।
  • जरूरत पड़ने पर ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे और जांच में सहयोग करेंगे।
  • 10 लाख का बेड बॉन्ड भरना होगा।

1. केजरीवाल के सामने अभी भी मुश्किलें क्यों?

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने केजरीवाल को नियमित जमानत देने का फैसला सुनाया। जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने उनके फैसले पर सहमति जताई। कोर्ट ने केजरीवाल को 10 लाख रुपये के मुचलके पर जमानत दी है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने CBI की गिरफ्तारी को नियमों के तहत बताया। 

जस्टिस सूर्यकांत का कहना था कि अगर कोई व्यक्ति पहले से हिरासत में है और जांच के सिलसिले में उसे दोबारा अरेस्ट करना गलत नहीं है। कोर्ट ने कहा, CBI ने नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया है। उन्हें जांच की जरूरत थी, इसलिए इस केस में अरेस्ट किया गया। इससे पहले केजरीवाल के वकील ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाए थे और इसे अवैध ठहराया था। कोर्ट के इस निर्णय को केजरीवाल के लिए झटका माना जा रहा है। केजरीवाल अभी भी ट्रायल का हिस्सा रहेंगे और कानूनी दायरे में बने रहेंगे।

2. सिर्फ चुनाव प्रचार तक ही सीमित रहेंगे केजरीवाल?

जमानत की शर्तों के अनुसार, केजरीवाल अब न तो किसी नीतिगत फैसले पर काम कर सकते हैं और न ही किसी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। उनके कार्य केवल चुनाव प्रचार तक सीमित रहेंगे, और सरकार से जुड़े किसी भी बड़े फैसले का अधिकार उनके पास नहीं होगा। ऐसे में जो अटकलें थीं कि मुख्यमंत्री के तौर पर रिहा होते ही केजरीवाल तेजी से फैसले लेंगे, वो अब साकार होती नजर नहीं आ रही हैं। विशेष रूप से, महिलाओं को प्रति महीने 1000 रुपये देने की योजना भी अब तक लागू नहीं हो पाई है। दिल्ली चुनाव से पहले ऐसी कई योजनाएं धरातल पर लाना अब मुश्किल होता दिख रहा है।

3. तो मुख्यमंत्री बने रहेंगे केजरीवाल?

हालांकि, यह तय है कि केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। वो अपना पद नहीं छोड़ेंगे। क्योंकि, लंबा वक्त जेल में बिताने के बाद भी उन्होंने पद नहीं छोड़ा है तो अब दायित्व छोड़ने की उम्मीद भी कम ही है।

4. बीजेपी की मुहिम हो सकती है कमजोर?

दिल्ली में हाल ही में राष्ट्रपति शासन की चर्चाएं जोरों पर थीं। तर्क दिया जा रहा था कि मुख्यमंत्री के जेल में होने के कारण राजधानी में प्रशासनिक कार्य ठप पड़े हैं। इसी सिलसिले में, बीते दिनों बीजेपी के विधायकों ने राष्ट्रपति को एक मांग पत्र सौंपा था, जिसमें दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई थी। राष्ट्रपति ने इस मांग पत्र को केंद्रीय गृह सचिव के पास विचारार्थ भेज दिया है। लेकिन केजरीवाल की रिहाई के बाद बीजेपी की इस मुहिम की धार कुंद हो सकती है।

5. केजरीवाल की रिहाई से क्या है फायदा?

केजरीवाल को दिल्ली की जनता की नब्ज अच्छी तरह समझने वाला नेता माना जाता है। विधानसभा चुनाव से महज 4 महीने पहले उनकी रिहाई दिल्ली की राजनीति में जबरदस्त हलचल मचाने वाली है। विपक्षी भी मानते हैं कि केजरीवाल की रिहाई से आम आदमी पार्टी की शक्ति, खासकर दिल्ली में, दोगुनी हो जाती है।

6. संगठन बिखरने से बचाएंगे केजरीवाल?

केजरीवाल के बाहर आने से संगठन के लिए जरूर अच्छी खबर है। पार्टी में 6 महीने से चेहरे का संकट देखने को मिल रहा था। सुनीता केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया और संजय सिंह तक संगठन से जुड़े फैसले ले रहे थे। इससे पहले आतिशी, सौरभ भारद्वाज और सांसद संदीप पाठक को आगे किया गया था। पिछले कुछ दिनों से पार्टी को बड़े झटके लगे हैं. पूर्व मंत्री राजकुमार आनंद और राजेंद्र पाल गौतम जैसे बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। राजकुमार, पटेलनगर से विधायक रहे हैं और वे बीजेपी में चले गए हैं। गौतम ने कांग्रेस जॉइन कर ली है. वे सीमापुरी से विधायक रहे हैं और केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे। इसके अलावा, कई पार्षदों ने भी AAP का साथ छोड़ दिया है।

7. सिसोदिया और बड़े नेताओं के रोल तय होंगे॥

आबकारी नीति मामले में एक समय आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व लगभग पूरी तरह जेल के अंदर था, लेकिन मनीष सिसोदिया की जमानत के बाद जो राहत का सिलसिला शुरू हुआ, वो केजरीवाल के जेल से बाहर आने के साथ ही पूरा होने जा रहा है। गुजरात विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के बाद संगठन विस्तार की चुनौती थी, लेकिन झटके के बाद झटकों ने इस महत्वाकांक्षी योजना पर ब्रेक लगा दिया था। अब केजरीवाल के बाहर आने पर कई अहम नेताओं को संगठन के भीतर नई जिम्मेदारियां दी जा सकतीं हैं ताकि पार्टी की गाड़ी दोबारा पटरी पर लौट सके। मनीष सिसोदिया यूं तो जेल से निकलने के बाद पूरी दिल्ली में पदयात्रा कर रहे हैं लेकिन उन्हें अभी ऐसी कोई औपचारिक जिम्मेदारी नहीं दी गई है। केजरीवाल अब फैसला कर पाएंगे कि सिसोदिया और बाकी वरिष्ठ नेता किस रोल में ज्यादा फिट बैठेंगे।

केजरीवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

जस्टिस सूर्यकांत का कहना था कि तर्कों के आधार पर हमने 3 सवाल तैयार किए हैं। क्या गिरफ्तारी अवैध थी? क्या अपीलकर्ता को नियमित जमानत दी जानी चाहिए? क्या चार्जशीट दाखिल करना परिस्थितियों में इतना बदलाव है कि उसे ट्रायल कोर्ट में भेजा जा सके? सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हिरासत में लिए गए व्यक्ति को गिरफ्तार करना कोई गलत बात नहीं है। हमने पाया है कि सीबीआई ने अपने आवेदन में उन कारणों को बताया है कि उन्हें क्यों ये जरूरी लगा। धारा 41ए (iii) का कोई उल्लंघन नहीं किया गया है। हमें इस तर्क में कोई दम नहीं लगता कि सीबीआई ने धारा 41ए सीआरपीसी का अनुपालन नहीं किया।

यानी केजरीवाल को भले सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है, लेकिन उनकी गिरफ्तारी गलत नहीं थी और यह बात जांच एजेंसी ने कोर्ट में साबित करके केजरीवाल की मुश्किलें कम नहीं होने दीं। यही वजह है कि कोर्ट ने फैसले में जमानत की शर्तों को सख्त रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अपीलकर्ता (केजरीवाल) इस केस के संबंध में सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं करेगा। यानी बयानाजी से केजरीवाल को परहेज करना होगा। वरना ये अदालत की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा। इसके कोर्ट ने यह भी साफ किया कि ईडी मामले में जो शर्तें लगाई गई हैं, वो इस मामले में भी लागू होंगी। वो ट्रायल कोर्ट के साथ पूरा सहयोग करेंगे।

किस आधार पर मिली केजरीवाल को जमानत?

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि हमने जमानत पर विचार किया है। मुद्दा स्वतंत्रता का है। हमें लगता है कि इस केस का नतीजा जल्द निकलने की संभावना नहीं है। सबूतों और गवाहों से छेड़छाड़ को लेकर अभियोजन पक्ष की आशंकाओं पर विचार किया गया। उन्हें खारिज किया जाता है। हमने निष्कर्ष निकाला है कि अपीलकर्ता को जमानत दी जानी चाहिए।

वहीं, जस्टिस भुइयां का कहना था कि सीबीआई को ऐसी धारणा दूर करनी चाहिए कि वो पिंजरे में बंद तोता है, उसे दिखाना चाहिए कि वो पिंजरे में बंद तोता नहीं है। केजरीवाल के जांच में सहयोग नहीं करने का हवाला देकर सीबीआई गिरफ्तारी को उचित नहीं ठहरा सकती और हिरासत में नहीं रखे रह सकती। जब ईडी मामले में जमानत मिल गई है तो कस्टडी में रखना न्याय की दृष्टि से ठीक नहीं होगा।

गिरफ्तारी की वैधता पर दोनों जजों में मतभेद॥

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों ने सीबीआई द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी की वैधता पर मतभेद जताया। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, लंबे समय तक कारावास आजादी से अन्याय के बराबर है। लेकिन उन्होंने कहा कि केजरीवाल की गिरफ्तारी कानूनी थी और इसमें कोई प्रक्रियागत गड़बड़ी नहीं थी। हालांकि, जस्टिस उज्जल भुइयां का अलग मत था। 

उन्होंने कहा, सीबीआई द्वारा की गई गिरफ्तारी 'अनुचित' थी। जस्टिस भुइयां का कहना था कि ईडी मामले में जमानत मिलने के बावजूद गिरफ्तारी करना सवाल खड़े करती है। ये सिर्फ  जेल से रिहाई में बाधा डालने की कोशिश प्रतीत हो रही है। ईडी मामले में रिहाई के समय सीबीआई की जल्दबाजी समझ से परे है, जबकि 22 महीने तक उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पांच सितंबर को केजरीवाल की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीबीआई ने इस मामले में केजरीवाल को 26 जून को गिरफ्तार किया था, उस समय केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद थे। इससे पहले ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 21 मार्च को केजरीवाल को गिरफ्तार किया था। इसी शराब घोटाला मामले में आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह भी लंबे समय तक तिहाड़ जेल में बंद रहे। फिलहाल दोनों नेता जमानत पर बाहर हैं।

केजरीवाल ने कोर्ट में दलील दी है कि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं। सिर्फ सरकारी गवाहों पर भरोसा कर उन्हें गिरफ्तार किया गया था। जबकि जांच एजेंसियां कह रही है कि केजरीवाल शराब घोटाले मामले के मुख्य साजिशकर्ता हैं, इसलिए उन्हें जमानत मिलने से जांच प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट भी पिछले कई मामलों में दोहरा चुका है कि जमानत के नियम और हिरासत अपवाद है। केजरीवाल पर ईडी का आरोप है कि जिस शराब नीति से शराब कंपनियों और कुछ लोगों को फायदा पहुंचाकर घोटाला हुआ, उस नीति को ड्राफ्ट करने में केजरीवाल भी शामिल थे। 

ईडी के मुताबिक, केजरीवाल 2 तरीके से मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी हैं. साथ ही ईडी मानती है कि केजरीवाल ने 100 करोड़ की मांग भी की थी। वहीं, आम आदमी पार्टी पर गोवा विधानसभा चुनाव में रिश्वत के 45 करोड़ रुपए से प्रचार का भी आरोप है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने गिरफ्तारी पर उठाए गंभीर सवाल॥

केजरीवाल (Kejriwal News) की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए दलील दी थी कि सीआरपीसी की धारा-41ए में पूछताछ का नोटिस भेजे बिना सीधे गिरफ्तार करना गैरकानूनी है। सिंघवी ने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपने कई फैसलों में कह चुका है कि जमानत नियम और जेल अपवाद है। केजरीवाल संवैधानिक पद पर हैं, जमानत मिलने पर उनके भागने की संभावना नहीं है।

आप से राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने कहा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक 'उम्मीद' हैं और हम उनकी जमानत पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को दिल्ली के केजरीवाल की जमानत की मांग करने वाली और आबकारी नीति 'घोटाले' में सीबीआई द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा।

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