Varanas News : ज्ञानवापी के पूरे परिसर का नहीं होगा ASI सर्वे, हिंदू पक्ष की याचिका खारिज।

Gyanpavi Mosque Row: ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष को बड़ा झटका लगा है। हिंदू पक्ष की संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर के अतिरिक्त सर्वे की अपील पर कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने हिंदू पक्ष के अतिरिक्त सर्वे की मांग को खारिज कर दिया है। 

न तो सर्वे होगा और न ही खुदाई होगी - कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि, ज्ञानवापी मस्जिद में न तो सर्वे होगा और न ही खुदाई होगी। ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे को लेकर वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई चल रही थी। ASI सर्वे होने के बाद अतिरिक्त सर्वे की जरूरत पर कोर्ट ने सवाल किया था। 8 महीने तक इस मामले की सुनवाई चली थी, जिसके बाद आज इस पर फैसला आया है। हिंदू पक्ष अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं है और मामले को लेकर हाई कोर्ट में जाने की तैयारी में है।

हिंदू पक्ष की याचिका खारिज॥

ज्ञानवापी मामले में वाराणसी की अदालत ने शुक्रवार को हिंद पक्ष की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें पूरे परिसर के ASI सर्वेक्षण की मांग की गई थी। हिंदू पक्षकार विजय शंकर रस्तोगी ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे भगवान आदि विशेश्वर का 100 फीट का विशाल शिवलिंग और अरघा स्थित है जिसका पेनिट्रेटिंग रडार की मदद से पुरातात्विक सर्वेक्षण होना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी मांग की थी कि वजूखाने का भी सर्वेक्षण होना चाहिए जो पूर्व के ASI सर्वे में नहीं हुआ है। इसके अलावा बचे हुए तहखानों का भी सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।

हिंदू पक्ष अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं॥

कोर्ट के इस आदेश के बाद अब यह मामला एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। कोर्ट के फैसले पर हिन्दू पक्ष के मुख्य अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी और हिंदू पक्ष अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी की प्रतिक्रिया सामने आई है। 

हिंदू पक्ष के प्रमुख अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि हमारी ओर से दी गई अतिरिक्त सर्वेक्षण के आवेदन को निरस्त कर दिया गया है। अब हम इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में जाएंगे। हमारी मांग थी कि एएसआई द्वारा पूरे परिसर की सर्वे कराई जाए। मुझे लगता है कि इस न्यायालय ने माननीय हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया है। उन्होंने कहा कि हमें कोर्ट के आदेश की कॉपी का इंजतार है। इसका पूरा अध्ययन करने के बाद हम हाई कोर्ट जाएंगे। 

उन्होंने कहा, हाई कोर्ट ने इस कोर्ट को निर्देशित किया था कि अगर 4 अप्रैल 2021 के अनुसार पूर्व में दाखिल की गई ASI रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है, तो अतिरिक्त सर्वे मंगाने का अधिकार है। इस आदेश का उल्लंघन किया गया है। हम इस आदेश की कॉपी लेने के बाद हाई कोर्ट जाएंगे। हिंदू पक्ष के अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा कि अतिरिक्त सर्वे की जो मांग की गई थी, उसे कोर्ट ने निरस्त कर दिया है। हमारी मांग थी कि ज्ञानवापी परिसर के बचे हुए इलाके का भी सर्वे कराया जाए।

इससे पहले विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में अपनी दलील में कहा पिछला ASI सर्वे अधूरा था। उन्होंने दावा किया कि जिस क्षेत्र में शिवलिंग होने का दावा हिंदू पक्ष कर रहा है, पिछली बार उस क्षेत्र का सर्वेक्षण नहीं किया गया था और इसलिए पूरे ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India) से सर्वेक्षण कराए जाने की आवश्यकता है।

क्या है हिदू पक्ष का दावा.?

हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि मुख्य गुंबद के नीचे 100 फुट का शिवलिंग मौजूद है और परिसर के शेष स्थल की खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराया जाना चाहिए। यह मामला 1991 में सोमनाथ व्यास द्वारा दाखिल किए गए वाद से जुड़ा है। 

हिन्दू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने इस पर तफ्सील से जानकारी देते हुए बताया कि सिविल सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट वाराणसी में केस संख्या 610, वर्ष 1991 के अंतर्गत लंबित है वाद में एएसआई सर्वे पहले ही हो चुका था लेकिन इस केस में आज 08 अप्रैल 2021 को एक आदेश पारित हुआ है। उस आदेश के अनुपालन में कोई आदेश नहीं हुआ था, इसलिए मेरे द्वारा प्रार्थना पत्र दिया गया था कि संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का अतिरिक्त सर्वे कराया जाए। जो पूर्व के सर्वे में नहीं हुआ है वह कराया जाए।

मुस्लिम पक्ष के पक्ष में आपने क्या दलीलें रखीं?

विजय शंकर रस्तोगी ने आगे कहा कि सुनवाई में मुस्लिम पक्ष इसके विपरीत कहता है। हिंदू जो भी कहेगा, वह बिल्कुल विपरीत ही कहेंगे। वह कह रहे थे कि सर्वे उचित नहीं है और सर्वे नहीं होना चाहिए। वह ऐसी बातें कर रहे थे जिसका कोई मतलब नहीं है। किस तरीके का सर्वे हो इस पर वह कहते हैं, 'हम ऐसा करना चाहते हैं एक सर्वेक्षण कि केंद्रीय गुंबद के नीचे, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का सौ फीट लंबा शिवलिंग है और अरघा सौ फीट गहरा है। उन्होंने इसे बड़ी सीमाओं और पट्टियों से ढक दिया है और इसे अस्तित्वहीन कर दिया है। हम इसे प्रकाश में लाना चाहते हैं। न तो ASI और न ही जीपीआर सिस्टम वहां काम कर रहा था।'

क्यों चाहिए सर्वे.?

उन्होंने आगे बताया कि न तो एएसआई और न ही जीपीआर सिस्टम स्पष्ट आकार और नीचे की हर चीज की रिपोर्ट देने में सक्षम था। इसलिए मेरी अदालत से यही प्रार्थना थी कि इस संरचना से हटकर, इसे कोई नुकसान पहुंचाए बिना, 10 मीटर, 5 मीटर दूर गड्ढा खोदकर अंदर जाएं और उस स्तर पर देखें कि स्वयंभू विश्वेश्वर का ज्योतिर्लिंग, जिनके नाम से काशी जानी जाती है, जिनके नाम से काशी दुनिया में प्रसिद्ध है, ऐसे विश्वनाथ वहां मौजूद हैं या नहीं और उसके बारे में रिपोर्ट करें।”

बता दें कि, इस मामले में गत 19 अक्टूबर को बहस पूरी होने के बाद वाराणसी कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें 25 अक्टूबर को फैसला सामने आया है। मामले की समीक्षा सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट युगुल शंभू द्वारा की जा रही थी।

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