वाराणसी के बुनकरों को मिलेगी ऑनलाइन बाजार की सुविधा, विकसित होगा मार्केटिंग ऐप, 7 करोड़ की परियोजना मंजूर; जाने इतिहास।
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में अब बुनकरों को अपने उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार में भटकने की जरूरत नहीं होगी। उनके लिए एक खास मार्केटिंग ऐप बनाया जाएगा, जिससे वे ऑनलाइन मार्केट से सीधे जुड़ सकेंगे और अपने उत्पाद बेच सकेंगे। पांडेपुर में उत्तर प्रदेश सेरिकल्चर फेडरेशन द्वारा बुनकरों के कार्य को एक नई पहचान देने के लिए एक मार्केट विकसित किया जाएगा। ग्राहकों को शुद्ध रेशम की पहचान में मदद करने के लिए एक टेस्टिंग लैब भी बनाई जाएगी।
निदेशक उद्योग, IAS वीजेंद्र पंडियन की अध्यक्षता में स्टेट लेवल कमिटी द्वारा ODOP योजना के तहत पांडेपुर वाराणसी स्थित “सिल्क इक्स्चेंज सेंटर” को “कॉमन फ़सिलिटी सेंटर” के तौर पर विकसित करने हेतु 07 करोड़ की परियोजना स्वीकृत कर दी गई हैं।
उत्तर प्रदेश के रेशम की ब्रांडिंग की योजना है। सोशल मीडिया के माध्यम से भी इसका प्रचार किया जाएगा। वाराणसी के उत्पादों की बिक्री और ग्लोबल पहचान दिलाने हेतु AMAZON एवं Flipcart जैसा रेशम का ऑनलाइन मार्केटिंग पोर्टल एवं Marketting App भी विकसित किया जाएगा।
वाराणसी के बुनकरों के लिए सरकारी योजनाओं से क्या होंगे फायदे..?
इस नई योजना से वाराणसी के बुनकरों को कई फायदे मिलने की उम्मीद है:
1. आसान बाजार तक पहुंच: मार्केटिंग ऐप के माध्यम से बुनकर अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेच सकेंगे। इससे उन्हें दूर-दराज के बाजारों तक पहुंच मिलेगी और उनकी बिक्री बढ़ेगी।
2. बिचौलियों से आज़ादी: बुनकरों को अब अपने उत्पाद बेचने के लिए बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जिससे उन्हें अपने उत्पादों का सही मूल्य मिल सकेगा।
3. सुधरी हुई आय: ऑनलाइन बिक्री से बुनकरों की आय में सुधार होगा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
4. उत्पादों की पहचान: नए "सिल्क एक्सचेंज सेंटर" और टेस्टिंग लैब से वाराणसी के रेशम उत्पादों की पहचान बढ़ेगी। ग्राहकों को शुद्धता की गारंटी मिलेगी, जिससे उनकी रुचि और विश्वास बढ़ेगा।
5. वैश्विक बाजार में पहचान: अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे पोर्टलों पर बिक्री से बुनकरों को अपने उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंचाने का अवसर मिलेगा।
कुल मिलाकर, यह योजना बुनकरों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही उनके काम को सम्मान और पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाएगी।
बुनकरों की कला और बनारसी साड़ियों का समृद्ध इतिहास॥
वाराणसी में बुनकरों का इतिहास बेहद पुराना और समृद्ध है, और यह शहर दुनिया भर में अपनी बुनाई कला और बनारसी साड़ी के लिए मशहूर है। यहां के बुनकर मुख्यतः मुस्लिम समुदाय से आते हैं और पीढ़ियों से इस कला को संजोए हुए हैं।
प्राचीन इतिहास और विकास॥
बुनकरी का इतिहास प्राचीन काल से ही वाराणसी में मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि मुगल शासकों के समय में यह कला विशेष रूप से उभरकर सामने आई। मुगल बादशाहों और उनके दरबारियों ने बनारसी कपड़ों की सुंदरता और उनके जटिल डिजाइन को सराहा, जिससे बुनाई कला को बड़ा प्रोत्साहन मिला। इसके बाद बनारसी साड़ियाँ, जो सुनहरे और चांदी के धागों, रेशम और जटिल पैटर्न से बनी होती थीं, विशेष रूप से लोकप्रिय हो गईं।
तकनीकी विकास और डिज़ाइन॥
वाराणसी के बुनकर अपने विशिष्ट पैटर्न और बुनाई तकनीक के लिए जाने जाते हैं। इनमें जामदानी, कट्टन, बूटेदार, और जंगला जैसी विविध शैलियाँ शामिल हैं। इन साड़ियों की बनावट में पारंपरिक भारतीय डिज़ाइन, जैसे फूल-पत्तियों और जालीदार पैटर्न का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है। आधुनिक युग में, ये डिज़ाइन कंप्यूटर आधारित तकनीक का उपयोग कर और भी आकर्षक बनाए जा रहे हैं, परंतु मूल कला और तकनीक अभी भी उसी परंपरागत रूप में संरक्षित है।
आधुनिक चुनौतियाँ और भविष्य॥
वाराणसी के बुनकरों को आज कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे मशीन निर्मित साड़ियों का बाजार में बढ़ता दबदबा, कच्चे माल की बढ़ती कीमतें और कम होते मुनाफे। इसके बावजूद, सरकार और कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने इस कला को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं शुरू की हैं, जिनके माध्यम से बुनकरों को वित्तीय सहायता और नई तकनीकों की शिक्षा दी जाती है।
संस्कृति में स्थान॥
बनारसी साड़ी का स्थान भारतीय संस्कृति में विशेष है, और इसे शादियों और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर पहनने का प्रचलन है। इसलिए वाराणसी की बुनाई कला आज भी भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है।
वाराणसी के बुनकरों की कला, धैर्य और मेहनत का प्रतिफल है कि उनकी बनाई हुई साड़ियाँ आज भी भारतीय परंपरा और विरासत का प्रतीक मानी जाती हैं।
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