Ram Rahim की पर बढ़ी मुश्किलें, CM भगवंत मान ने 2015 बेअदबी मामलों में मुकदमा चलाने की दी मंजूरी।

Gurmeet Ram Rahim : पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह पर 2015 में हुई बेअदबी घटनाओं से जुड़े मामलों में मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम रहीम के खिलाफ मुकदमे को फिर से शुरू करने के तीन दिन बाद आया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को निलंबित कर दिया, जिसमें मार्च 2024 में इन आपराधिक मामलों पर रोक लगाई गई थी।

न्यायमूर्ति भूषण आर गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने पंजाब सरकार की अपील पर उच्च न्यायालय के 11 मार्च के आदेश पर रोक लगा दी। राज्य ने उच्च न्यायालय द्वारा पहले से तय किए गए कानूनी मुद्दे पर फिर से विचार करने के दृष्टिकोण पर सवाल उठाया था। 11 मार्च के आदेश ने राम रहीम के खिलाफ मामलों में कार्यवाही रोक दी थी। इस आदेश में उनकी याचिका को एक बड़ी पीठ को भेजा गया था, जिसमें सवाल किया गया था कि क्या CBI जांच के लिए राज्य की सहमति बाद में वापस ली जा सकती है।

तीन मामलों में मुकदमा चलाने की मंजूरी॥

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक फरीदकोट के थाने में दर्ज तीन मामलों में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई है। फ़ाइल को सीएम ने मंजूरी दे दी है, जिनके पास गृह मंत्री का प्रभार भी है। इस फ़ाइल को मंजूरी देने में दो साल से ज़्यादा समय लगा। राम रहीम, जो वर्तमान में बलात्कार और हत्या के मामले में 20 साल की सज़ा काट रहा है, हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान 20 दिन की पैरोल पर था। तीनों FIR 1 जून, 2015 से शुरू हुई बेअदबी की घटनाओं से संबंधित हैं।

सीएम की मंजूरी की थी आवश्यकता॥

तीनों मामलों में डेरा प्रमुख पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में आईपीएस की धारा 295 के तहत मामला दर्ज किया गया था। फ़ाइल को सीएम की मंजूरी की आवश्यकता थी, क्योंकि गृह मंत्री को ऐसे मामलों में अभियुक्त की परवाह किए बिना मुकदमा चलाने की मंजूरी देनी होती है। यह मुद्दा विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान उठाया था, जहां उन्होंने मान से मंजूरी देने में देरी पर सवाल किया था।

कब शुरू हुआ विवाद..?

यह विवाद पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार द्वारा सितंबर 2018 में मामलों की जांच के लिए CBI की सहमति वापस लेने के लिए एक अधिसूचना जारी करने से शुरू हुआ था। इसकी जांच राज्य पुलिस के एक विशेष जांच दल (SIT) को सौंप दी गई थी। राम रहीम ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और 2015 की बेअदबी की प्राथमिकी में CBI जाँच जारी रखने की मांग की थी। पंजाब के महाधिवक्ता गुरमिंदर सिंह ने जनवरी 2019 के उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया जिसने CBI की सहमति वापस लेने के राज्य के अधिकार को बरकरार रखा था।

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